Saturday, September 1, 2007

वाल्मीकि-रामायण कम्प्यूटर की कसौटी पर !
श्री राम के जन्म के विषय में विभिन्न धारणायें प्रचलित हैं। आधुनिक कम्प्यूटर युगीन विद्वानों को छोड़ कर लगभग सभी धर्मनिष्ठ व्यक्ति, ‘रामचरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास, ‘रामायण’ के रचयिता आदि कवि वाल्मीकि तथा पुराण आदि इस बात में एक-सम्मत हैं कि श्री राम त्रेता युग में अवतरित हुए थे। त्रेता युग कितना पुरातन है, यह जानने के लिये अन्य युगों की जानकारी असंगत नहीं होगी। चार युगों की अवधि इस प्रकार मानी गई हैः सत्ययुगः १,७२८,०००(1,728,000) वर्ष; त्रेतायुगः १,२९६,०००(1,296,000) वर्ष; द्वापरयुगः ८६४,०००(864,000) वर्ष; कलियुगः ४३,२००० वर्ष कलियुग अभी अपने शैशव काल में ही है और केवल ५००६(5006) वर्ष ही लांघ कर वर्तमान में अपने रंग दिखा रहा है। इन आंकड़ों के आधार पर त्रेतायुग आज से ९२,५०६(92,506) वर्ष पहले समाप्त हुआ और श्री राम ने भी ९२,५०६(92,506) वर्ष पूर्व ही जन्म लिया होगा। यह काल भी निर्णयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार रामायण-काल की घटनाएं २४वें ‘महायुग’ में निर्धारित की गई हैं। उक्त चारों युगों की आयु के योग को एक महायुग माना गया है, जिसका अर्थ है किः १ महायुग (१७२,८००० + १,२९६,००० + ८६४,००० + ४३,२०००) = ४,३२०,००० {(172,8000+1,296,000+864,000+43,2000)=4,320,000)}वर्ष का हुआ। यह ज्ञात होना आवश्यक है कि वर्तमान २८वां(28th) महायुग चल रहा है। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार राम-काल से अब तक ४ युग व्यतीत हो चुके हैं। स्पष्ट है, राम के जीवनकाल को लगभग ४ x ४,३२०,००० = १७,२८०,००० (4×4,320,000=17,280,000)वर्ष बीत गये हैं। इसी भूलभुलैय्या में एक भटकी हुई धारणा के अनुसार राम-जन्म का समय १७८१२ (17812) वर्ष पूर्व बताया गया है। डा. प.व. वर्तक रामायाण काल को ७३२३ ईस्वी.पूर्व मानते हैं। यदि अपने स्थानीय छोटे से मन्दिर के पुजारी से पूछें तो वे अटपटा सा उत्तर दे कर विषय को समाप्त करने का प्रयत्न करेंगेः अजी, दस हजार से अधिक बात है किन्तु वैसे तो भगवान श्री राम जी अनादि हैं, अनन्त हैं। उनका आदि तथा अन्त के पूछने से भी पाप लगता है। ‘जय सिया राम’ कहो भाई!! प्रश्न है कि क्या इन में कोई भी प्रमाण मिलता है। उत्तर सीधा सा हैः ‘ नहीं! इन में कोई भी तर्कयुक्त अनुसंधानिक प्रमाण दिखाई नहीं देता। इन चार युगों और महा-युगों से थोड़ा निकल कर, आज के विज्ञान और आधुनिक कम्प्यूटर के युग में इसी विषय पर श्री पुष्कर भटनागर के शोध-कार्य पर दृष्टि डालें तो एक नई दिशा मिलती है। पुष्कर जी भारत में इन्लैंड रेवेन्यु विभाग में कार्य-रत हैं। उनके इस आश्चर्य-करने वाली खोज का ऋषि वाल्मीकि और उनकी रामायण से सीधा सम्बन्ध है। यह कहना उचित होगा कि वाल्मीकि स्वयं गणित-ज्योतिष, वेदांग-ज्योतिष विद्या, आकाशीय चन्द्र, सूर्य आदि नक्षत्रों और ग्रहों की गातियां तथा उनके काल-विभाजन का ज्ञान और खगोल विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित थे। इस ज्ञान का उन्होंने रामायण की रचना में बड़ी निपुणता से अपनी काव्य-कला में उपयोग किया है। वाल्मीकि श्री राम के समकालीन थे तथा उनकी जीवन घटनाओं से पूर्णरूपेन परिचित थे। कुछ लगों का कहना है कि राजाओं में अपनी जीवनी राज कवियों द्वारा लिखवाने का पुराना प्रचलन है जिसमें तथ्यों को दबा कर राजा के आदर्शों को उभारने के लिये आद्यंत अतिशयोक्ति का प्रयोग किया जाता था। किन्तु वाल्मीकि की रामायण के विषय में यह लागू नहीं होता क्योंकि वे ना तो राज-कवि थे और ना ही राज्य-ॠषि अथवा राज्य-गुरु थे। उनका अपना आश्रम था जिसे वे स्वाधीनता से चलाते थे। राजा से त्यक्त सीता को आश्रय देना इस का प्रमाण है। इस लिये रामायण में जो भी अतिरंजित भाग मिलता है, वह काव्य-कला के अनुरूप मान्य है। पुष्कर भटनागर जी के प्रयास से उन्हें अमेरिका से एक कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर “प्लैनिटेरियम” प्राप्त हुआ। इस सॉफ्टवेयर से सूर्य, चन्द्र, ग्रहण, नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति, दूरी, काल-समय आदि की जानकारी के लिये खगोल तथा अन्य सम्बन्धित वैज्ञानिक, अन्तरिक्ष-जिज्ञासु आदि इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हैं। पुष्कर जी ने इस सॉफ्ट्वेयर फलस्वरूप रामायण की घटनाओं की सार्थकता की जांच की है। इस दिशा में उनके शोध-कार्य की सफलता के कुछ नमूने निम्नलिखित हैं -
१). श्री राम का जन्मः-रामायण के बाल-काण्ड के १९वें सर्ग तथा ८वें और ९वें श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा है कि श्री राम का जन्म चैत्र मास की नवम तिथि में हुआ था जिस में राशि-चक्र और नक्षत्र मण्डल की स्थिति ऐसी थी कि सूर्य मेष घर में, शनि तुला में, बृहस्पति कर्क में, शुक्र शनि में, मंगल ग्रह मकर में थे।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवम दिवस तथा कर्क लग्न में जब कर्क पूर्व में उदय हो रहा था, चन्द्रमा पुनर्वासु (पोलक्स स्टार) पर और दिन में लगभग दोपहर का समय था। ये आंकड़े ‘प्लैनिटेरियम’ में कम्प्यूटर द्वारा भर दिये गए। कम्प्यूटर के परिणामों ने चकित कर दिया। राशि, नक्षत्र, ग्रहों तथा तारा-मण्डल की स्थिति से सिद्ध हुआ कि श्री राम का जन्म १० जनवरी, ५११४ (10 January, 5114) ईसवी पूर्व जो भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दोपहर के १२ (12)बजे और १ (1) बजे के मध्य का समय निकलता है। इस प्रकार श्री राम का जन्म लगभग ७१२० (7120) वर्ष पूर्व हुआ था।श्री राम अनुज लक्षमण को ले कर १३वें (13th) वर्ष में ऋषि विश्वमित्र के साथ तपोवन में गये थे। वहां से राजा जनक की राजधानी मिथिला में प्रवेश किया जहां राजकुमारी सीता के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ। वाल्मीकि ने इस यात्रा-मार्ग में २३ (23) स्थानों का उल्लेख किया है जिन में शृंगी आश्रम, राम घाट, ताड़का वन, सिद्धाश्रम, गौतमाश्रम, जनक पुर, सीता कुण्ड आदि सम्मलित हैं जहां आज भी उनके स्मारक-चिन्ह मिलते हैं। यह याद रहे कि स्थानों का नामकरण उन घटनाओं के पश्चात ही किया जाता है।
२). राम-बनवासः-अयोध्या काण्ड २।४।१८ (2/4/18) में स्पष्ट है कि राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का समय विद्वान पण्डितों तथा गुरु वसिष्ठ के निर्देशानुसार निश्चित किया था जिस समय सूर्य, चन्द्रमा और राहू राजा के रेवती नक्षत्र को इस प्रकार घेरे हुए थे जिस स्थिति में वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं या षड़यन्त्र के शिकार होते हैं।राजा दशरथ की राशि मीन थी और नक्षत्र रेवती था। यही वह क्षण थे जब षड़यन्त्र द्वारा श्री राम को अयोध्या छोड़ कर १४ वर्ष का बनवास मिला। रामायण के अनुसार उस समय श्री राम की आयु २५ वर्ष थी। प्लैनिटेरियम सॉफ्टवेयर द्वारा इन आंकड़ों से सिद्ध होता है उस दिवस की तिथि ५ जनवरी ५०८९ ईसवी पूर्व (5 January 50890 ईसवी पूर्व तक २५ वर्ष ५ दिन(25 yrs. 5 days) बनते हैं जो वाल्मीकि के कथन की भी पुष्टि करती है।
३). खरदूषण से युद्धः-श्री राम के वनवास-काल के १३वें वर्ष के मध्य खरदूषण से उनका युद्ध हुआ था। उस समय रामायण में सूर्य-ग्रहण का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि यह भी लिखते हैं कि वह अमावस्य का दिन था तथा मंगल मध्य में था। एक ओर शुक्र एवं बुद्ध और दूसरी ओर सूर्य एवं शनि थे। कम्प्यूटर में यह आधार-सामग्री डालने पर परिणाम-स्वरूप ७ अक्तूबर, ५०७७ ई.पूर्व (7 October, 5077 ईसवी पूर्व) की तिथि प्राप्त हुई। साथ ही सूर्य ग्रहण और अमावस्या की स्थिति भी स्पष्ट थी। इतना ही नहीं बल्कि सूर्य-ग्रहण की दिशा भी मिलती है कि उस समय सूर्य ग्रहण पञ्चवटी से देखा जा सकता था।
४). रावण का वधः- रामायण में रावण के वध के समय नक्षत्रों की स्थिति वर्णन की गई है। इस आधार पर ‘प्लैनिटेरियम’ के अनुसार रावण की मृत्यु ४ दिसम्बर, ५०७६ (4 December, 5076) ईसवी पूर्व को हुई थी।
५). वन-वास की समाप्तिः-वन-वास की १४ (14) वर्षीय अवधि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर समाप्त होती है जो कम्प्यूटर के अनुसार २ जनवरी, ५०७५(2nd January, 5075) ईस्वी पूर्व थी। इस प्रकार अयोध्या लौटने के समय श्री राम की आयु ३९ वर्ष (39 years) की थी। इन सभी घटनाओं को अंक-गणित द्वारा परखें तो हर प्रकार से ताल-मेल ठीक बैठता है।‘प्लैनिटेरियम’ के अतिरिक्त और भी बातें हैं जो रामायण की अन्य घटनाओं और स्थान आदि पर भी दृष्टि डालना असंगत नहीं होगा।
६). समुद्र पर सेतु का निर्माणः-श्री राम की प्रेरणा से नल और नील अभियन्ताओं के पर्यवेक्षण में हनुमान आदि कुशल कार्य-कर्ताओं के प्रयास से सेतु-निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ था। एक अमेरिकन कम्पनी ने, जो समुद्री अन्वेषण के लिये कार्य कर रही है, इन्टरनेट पर कुछ मानव-कृत सेतु के चित्र दिये थे जिन में एक चाप आकार के पुल के अवशेष मन्नर खाड़ी में रामेश्वरम् तथा श्री लंका के मध्य डूबे हुए हैं। जिन पत्थरों का इस पुल में प्रयोग किया गया था, अनुमान है कि वे लगभग १,७००,००० वर्ष (1,700,000 yrs) पुराने थे। यह पुल कब बना था, इसके निर्माण-समय का अनुमान सन्देहात्मक है।
ऋषि वाल्मीकि के लिये दो शब्दः-कहा जाता है कि आरम्भ में वे दस्यु थे। अतः निर्भीकता का गुण उन में स्वतः ही आ गया था। जब उन्हें जीवन की सार्थकता का भान हुआ तो हृदय-परिवर्तन के साथ उचित-अनुचित का भेद समझ कर सत्य का साथ देते, चाहे राजा की अवज्ञा ही न करनी पड़े।राजा राम की त्याज्य गर्भवती सीता को बनैले पशुओं के मध्य वन में अकेली छोड़ दी गई, किन्तु किसी में भी साहस न था कि राजा के विरुद्ध उन्हें आश्रय दे दे। राजा से दण्डित प्राणी को, चाहे वह निर्दोष हो, शरण देने में किस का साहस था। वाल्मीकि ने औचित्य को वरीयता दे कर, सीता जी को केवल आश्रय ही नहीं दिया, उनको पुत्री कह कर सम्मानित किया। प्रत्यक्ष है कि वे समय से बहुत आगे थे। स्वयं निम्न जाति (दस्यु) के हो कर भी कर्म-परिवर्तन के आधार पर ऋषि-पद के स्तर को प्राप्त कर समाज की पुरानी धारणायें बदलने में सक्षम हुए। वे सच्चे रूप में क्रांतिकारी थे।महावीर शर्मा

श्री राम जय राम जय जय राम

वाल्मीकि-रामायण कम्प्यूटर की कसौटी पर !
श्री राम के जन्म के विषय में विभिन्न धारणायें प्रचलित हैं। आधुनिक कम्प्यूटर युगीन विद्वानों को छोड़ कर लगभग सभी धर्मनिष्ठ व्यक्ति, ‘रामचरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास, ‘रामायण’ के रचयिता आदि कवि वाल्मीकि तथा पुराण आदि इस बात में एक-सम्मत हैं कि श्री राम त्रेता युग में अवतरित हुए थे। त्रेता युग कितना पुरातन है, यह जानने के लिये अन्य युगों की जानकारी असंगत नहीं होगी। चार युगों की अवधि इस प्रकार मानी गई हैः सत्ययुगः १,७२८,०००(1,728,000) वर्ष; त्रेतायुगः १,२९६,०००(1,296,000) वर्ष; द्वापरयुगः ८६४,०००(864,000) वर्ष; कलियुगः ४३,२००० वर्ष कलियुग अभी अपने शैशव काल में ही है और केवल ५००६(5006) वर्ष ही लांघ कर वर्तमान में अपने रंग दिखा रहा है। इन आंकड़ों के आधार पर त्रेतायुग आज से ९२,५०६(92,506) वर्ष पहले समाप्त हुआ और श्री राम ने भी ९२,५०६(92,506) वर्ष पूर्व ही जन्म लिया होगा। यह काल भी निर्णयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता क्योंकि ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार रामायण-काल की घटनाएं २४वें ‘महायुग’ में निर्धारित की गई हैं। उक्त चारों युगों की आयु के योग को एक महायुग माना गया है, जिसका अर्थ है किः १ महायुग (१७२,८००० + १,२९६,००० + ८६४,००० + ४३,२०००) = ४,३२०,००० {(172,8000+1,296,000+864,000+43,2000)=4,320,000)}वर्ष का हुआ। यह ज्ञात होना आवश्यक है कि वर्तमान २८वां(28th) महायुग चल रहा है। ‘मत्स्य पुराण’ के अनुसार राम-काल से अब तक ४ युग व्यतीत हो चुके हैं। स्पष्ट है, राम के जीवनकाल को लगभग ४ x ४,३२०,००० = १७,२८०,००० (4×4,320,000=17,280,000)वर्ष बीत गये हैं। इसी भूलभुलैय्या में एक भटकी हुई धारणा के अनुसार राम-जन्म का समय १७८१२ (17812) वर्ष पूर्व बताया गया है। डा. प.व. वर्तक रामायाण काल को ७३२३ ईस्वी.पूर्व मानते हैं। यदि अपने स्थानीय छोटे से मन्दिर के पुजारी से पूछें तो वे अटपटा सा उत्तर दे कर विषय को समाप्त करने का प्रयत्न करेंगेः अजी, दस हजार से अधिक बात है किन्तु वैसे तो भगवान श्री राम जी अनादि हैं, अनन्त हैं। उनका आदि तथा अन्त के पूछने से भी पाप लगता है। ‘जय सिया राम’ कहो भाई!! प्रश्न है कि क्या इन में कोई भी प्रमाण मिलता है। उत्तर सीधा सा हैः ‘ नहीं! इन में कोई भी तर्कयुक्त अनुसंधानिक प्रमाण दिखाई नहीं देता। इन चार युगों और महा-युगों से थोड़ा निकल कर, आज के विज्ञान और आधुनिक कम्प्यूटर के युग में इसी विषय पर श्री पुष्कर भटनागर के शोध-कार्य पर दृष्टि डालें तो एक नई दिशा मिलती है। पुष्कर जी भारत में इन्लैंड रेवेन्यु विभाग में कार्य-रत हैं। उनके इस आश्चर्य-करने वाली खोज का ऋषि वाल्मीकि और उनकी रामायण से सीधा सम्बन्ध है। यह कहना उचित होगा कि वाल्मीकि स्वयं गणित-ज्योतिष, वेदांग-ज्योतिष विद्या, आकाशीय चन्द्र, सूर्य आदि नक्षत्रों और ग्रहों की गातियां तथा उनके काल-विभाजन का ज्ञान और खगोल विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित थे। इस ज्ञान का उन्होंने रामायण की रचना में बड़ी निपुणता से अपनी काव्य-कला में उपयोग किया है। वाल्मीकि श्री राम के समकालीन थे तथा उनकी जीवन घटनाओं से पूर्णरूपेन परिचित थे। कुछ लगों का कहना है कि राजाओं में अपनी जीवनी राज कवियों द्वारा लिखवाने का पुराना प्रचलन है जिसमें तथ्यों को दबा कर राजा के आदर्शों को उभारने के लिये आद्यंत अतिशयोक्ति का प्रयोग किया जाता था। किन्तु वाल्मीकि की रामायण के विषय में यह लागू नहीं होता क्योंकि वे ना तो राज-कवि थे और ना ही राज्य-ॠषि अथवा राज्य-गुरु थे। उनका अपना आश्रम था जिसे वे स्वाधीनता से चलाते थे। राजा से त्यक्त सीता को आश्रय देना इस का प्रमाण है। इस लिये रामायण में जो भी अतिरंजित भाग मिलता है, वह काव्य-कला के अनुरूप मान्य है। पुष्कर भटनागर जी के प्रयास से उन्हें अमेरिका से एक कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर “प्लैनिटेरियम” प्राप्त हुआ। इस सॉफ्टवेयर से सूर्य, चन्द्र, ग्रहण, नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति, दूरी, काल-समय आदि की जानकारी के लिये खगोल तथा अन्य सम्बन्धित वैज्ञानिक, अन्तरिक्ष-जिज्ञासु आदि इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हैं। पुष्कर जी ने इस सॉफ्ट्वेयर फलस्वरूप रामायण की घटनाओं की सार्थकता की जांच की है। इस दिशा में उनके शोध-कार्य की सफलता के कुछ नमूने निम्नलिखित हैं -
१). श्री राम का जन्मः-रामायण के बाल-काण्ड के १९वें सर्ग तथा ८वें और ९वें श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा है कि श्री राम का जन्म चैत्र मास की नवम तिथि में हुआ था जिस में राशि-चक्र और नक्षत्र मण्डल की स्थिति ऐसी थी कि सूर्य मेष घर में, शनि तुला में, बृहस्पति कर्क में, शुक्र शनि में, मंगल ग्रह मकर में थे।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवम दिवस तथा कर्क लग्न में जब कर्क पूर्व में उदय हो रहा था, चन्द्रमा पुनर्वासु (पोलक्स स्टार) पर और दिन में लगभग दोपहर का समय था। ये आंकड़े ‘प्लैनिटेरियम’ में कम्प्यूटर द्वारा भर दिये गए। कम्प्यूटर के परिणामों ने चकित कर दिया। राशि, नक्षत्र, ग्रहों तथा तारा-मण्डल की स्थिति से सिद्ध हुआ कि श्री राम का जन्म १० जनवरी, ५११४ (10 January, 5114) ईसवी पूर्व जो भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दोपहर के १२ (12)बजे और १ (1) बजे के मध्य का समय निकलता है। इस प्रकार श्री राम का जन्म लगभग ७१२० (7120) वर्ष पूर्व हुआ था।श्री राम अनुज लक्षमण को ले कर १३वें (13th) वर्ष में ऋषि विश्वमित्र के साथ तपोवन में गये थे। वहां से राजा जनक की राजधानी मिथिला में प्रवेश किया जहां राजकुमारी सीता के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ। वाल्मीकि ने इस यात्रा-मार्ग में २३ (23) स्थानों का उल्लेख किया है जिन में शृंगी आश्रम, राम घाट, ताड़का वन, सिद्धाश्रम, गौतमाश्रम, जनक पुर, सीता कुण्ड आदि सम्मलित हैं जहां आज भी उनके स्मारक-चिन्ह मिलते हैं। यह याद रहे कि स्थानों का नामकरण उन घटनाओं के पश्चात ही किया जाता है।
२). राम-बनवासः-अयोध्या काण्ड २।४।१८ (2/4/18) में स्पष्ट है कि राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का समय विद्वान पण्डितों तथा गुरु वसिष्ठ के निर्देशानुसार निश्चित किया था जिस समय सूर्य, चन्द्रमा और राहू राजा के रेवती नक्षत्र को इस प्रकार घेरे हुए थे जिस स्थिति में वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं या षड़यन्त्र के शिकार होते हैं।राजा दशरथ की राशि मीन थी और नक्षत्र रेवती था। यही वह क्षण थे जब षड़यन्त्र द्वारा श्री राम को अयोध्या छोड़ कर १४ वर्ष का बनवास मिला। रामायण के अनुसार उस समय श्री राम की आयु २५ वर्ष थी। प्लैनिटेरियम सॉफ्टवेयर द्वारा इन आंकड़ों से सिद्ध होता है उस दिवस की तिथि ५ जनवरी ५०८९ ईसवी पूर्व (5 January 50890 ईसवी पूर्व तक २५ वर्ष ५ दिन(25 yrs. 5 days) बनते हैं जो वाल्मीकि के कथन की भी पुष्टि करती है।
३). खरदूषण से युद्धः-श्री राम के वनवास-काल के १३वें वर्ष के मध्य खरदूषण से उनका युद्ध हुआ था। उस समय रामायण में सूर्य-ग्रहण का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि यह भी लिखते हैं कि वह अमावस्य का दिन था तथा मंगल मध्य में था। एक ओर शुक्र एवं बुद्ध और दूसरी ओर सूर्य एवं शनि थे। कम्प्यूटर में यह आधार-सामग्री डालने पर परिणाम-स्वरूप ७ अक्तूबर, ५०७७ ई.पूर्व (7 October, 5077 ईसवी पूर्व) की तिथि प्राप्त हुई। साथ ही सूर्य ग्रहण और अमावस्या की स्थिति भी स्पष्ट थी। इतना ही नहीं बल्कि सूर्य-ग्रहण की दिशा भी मिलती है कि उस समय सूर्य ग्रहण पञ्चवटी से देखा जा सकता था।
४). रावण का वधः- रामायण में रावण के वध के समय नक्षत्रों की स्थिति वर्णन की गई है। इस आधार पर ‘प्लैनिटेरियम’ के अनुसार रावण की मृत्यु ४ दिसम्बर, ५०७६ (4 December, 5076) ईसवी पूर्व को हुई थी।
५). वन-वास की समाप्तिः-वन-वास की १४ (14) वर्षीय अवधि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर समाप्त होती है जो कम्प्यूटर के अनुसार २ जनवरी, ५०७५(2nd January, 5075) ईस्वी पूर्व थी। इस प्रकार अयोध्या लौटने के समय श्री राम की आयु ३९ वर्ष (39 years) की थी। इन सभी घटनाओं को अंक-गणित द्वारा परखें तो हर प्रकार से ताल-मेल ठीक बैठता है।‘प्लैनिटेरियम’ के अतिरिक्त और भी बातें हैं जो रामायण की अन्य घटनाओं और स्थान आदि पर भी दृष्टि डालना असंगत नहीं होगा।
६). समुद्र पर सेतु का निर्माणः-श्री राम की प्रेरणा से नल और नील अभियन्ताओं के पर्यवेक्षण में हनुमान आदि कुशल कार्य-कर्ताओं के प्रयास से सेतु-निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ था। एक अमेरिकन कम्पनी ने, जो समुद्री अन्वेषण के लिये कार्य कर रही है, इन्टरनेट पर कुछ मानव-कृत सेतु के चित्र दिये थे जिन में एक चाप आकार के पुल के अवशेष मन्नर खाड़ी में रामेश्वरम् तथा श्री लंका के मध्य डूबे हुए हैं। जिन पत्थरों का इस पुल में प्रयोग किया गया था, अनुमान है कि वे लगभग १,७००,००० वर्ष (1,700,000 yrs) पुराने थे। यह पुल कब बना था, इसके निर्माण-समय का अनुमान सन्देहात्मक है।
ऋषि वाल्मीकि के लिये दो शब्दः-कहा जाता है कि आरम्भ में वे दस्यु थे। अतः निर्भीकता का गुण उन में स्वतः ही आ गया था। जब उन्हें जीवन की सार्थकता का भान हुआ तो हृदय-परिवर्तन के साथ उचित-अनुचित का भेद समझ कर सत्य का साथ देते, चाहे राजा की अवज्ञा ही न करनी पड़े।राजा राम की त्याज्य गर्भवती सीता को बनैले पशुओं के मध्य वन में अकेली छोड़ दी गई, किन्तु किसी में भी साहस न था कि राजा के विरुद्ध उन्हें आश्रय दे दे। राजा से दण्डित प्राणी को, चाहे वह निर्दोष हो, शरण देने में किस का साहस था। वाल्मीकि ने औचित्य को वरीयता दे कर, सीता जी को केवल आश्रय ही नहीं दिया, उनको पुत्री कह कर सम्मानित किया। प्रत्यक्ष है कि वे समय से बहुत आगे थे। स्वयं निम्न जाति (दस्यु) के हो कर भी कर्म-परिवर्तन के आधार पर ऋषि-पद के स्तर को प्राप्त कर समाज की पुरानी धारणायें बदलने में सक्षम हुए। वे सच्चे रूप में क्रांतिकारी थे।महावीर शर्मा